मीराबाई के देवर रतनसिंहजी को भी विश्वास हो गया था की भाभिसा से मिलने ठाकुर जी आते है.....
सावन की तीज के दिन भोजराजजी भी झूले झूल रहे थे , जैसे ही झुला धीमे पड़ा भोजराज के छोटे भाई रतनसिंह ने डोर सहित अपने भाई को बाहों में भर लिया और कहा की अब जल्दी से भाभिसा का नाम बता दीजिये , अब अगर आप ने विलम्ब किया तो मैं झूले से उतरने नही दूँगा ,
भोजराज बोले ("मेड़तिया घर रि थाती मीरा आभ आकाश कुसुम का फूल), इतना नाम सुना फिर तो रतनसिंग आभ आकाश कुसुम फूल का विचार ही करते रहे ,
एक दिन भोजराज को अकेला पा कर रतनसिंग अभिवाद्क कर समीप आ कर बैठ गए ,रतनसिंग ने देखा की भोजराज किसी गहन विचार में मग्न है रतनसिंग बोले बावजी हुकुम....?
भोजराज चोक कर हँस पड़े , बातो बातो में दोनों ही भाई ठठाकर हँस पड़े रतनसिंग ने गंभीर होकर कहा कितने समय बाद आपको ऐसे मुक्त कंठो से हँस ते हुए देख रहा हु।
भोजराज "अच्छा कहो कैसे आना हुआ ? रतनसिंग " बहुत समय से एक बात उथल - पुथल मचाये हुए है अवसर नही मिला और कभी हिम्मत न पड़ी , आज दोनों ही मिल गए है न , भोजराज "हा तो कह डालो , रतनसिंग "पहले वचन दो मेरी बात टालोगे तो नही ? भोजराज हंसते हुए बोले अरे टालने को क्या एक तुम्ही बचे हो ? बहुत लोग भरे पड़े है , रतनसिंग " उस दिन झूले पर आपने भाभीसा हुकुम का नाम लेते हुए उन्हें आभ आकाश का फूल क्यों कहा?
भोजराज बोले "क्या तुम्हारी भाभी तुम्हे बदसूरत दिखाई देती है ? रतनसिंग " नही मैंने आज तक इतनी सुन्दर कही नही देखि विधाता ने सोच - समझ कर जोड़ी मिलायी है , पर आकाश कुसुम कैसे है ? भोजराज " इसीलिए की वह धरा के सभी फूलो से सुन्दर है , रतनसिंग " बावजी हुकुम ! शाश्त्र अभ्यास से भले ही मैं जी चुराता रहा पर थोड़ी समझ आप के इस सेवक में है, इसी कारण वहाँ खड़े इतने लोगो में किसीका ध्यान इस और नही गया किन्तु मैं उसी क्षण बेचैन हो उठा हूँ । क्या इतना अपदार्थ हूँ की .........। रतनसिंग ने भोजराज की और सजल नेत्रों से देखा । भोजराज ने भाई को बाहों में भर लिया - और रुदे कंठ से बोले ऐसा न कहो ऐसा न कहो भाई !
भोजराज कुछ क्षण के लिए चुप होकर सामने कही दूर जैसे क्षीतिज् में कुछ ढूंडने लगे हो तब ,रतनसिंग ने उनके मुखपर आनेवाली उतार - चढ़ाव का निरिक्षण करते रहे , भोजराज काफी देर बाद बोले क्या करोगे सुन कर आभ आकाश कुसुम का फूल क्यों कहा ? ,
रतनसिंग "यह नही जनता पर फिर भी सुन्ना चाहता हु आकाश कुसुम किसे कहते है ? सुन्दर किन्तु जो अप्राप्य हो। भोजराज बोले बस यही है जो तुम जानना चाहते हो । बावजी हुकुम ! रतनसिंग केवल सम्बोधन करके रह गए ,क्षण भर में अपने को संभल कर रतनसिंग ने पूछा क्यों ? कैसे ?
भोजराज बोले यदि तुम्हे ज्ञात हो जाये की जिसे तुम विवाह कर लाये हो वो पर - स्त्री है तो तुम क्या कहोगे ?
रतनसिंग बोले पर स्त्री पर कैसे ? भाभिसा हो या कोई भी स्त्री । कोई भी विवाहिता नारी पुनः विवाह के लिए कैसे तैयार हो सकती है ? मेरी तो बुध्दि ही काम नही कर रही है , कैसे हुआ ये सब ?
भोजराज "मेड़ते में कुवर कलेवे में हमारे बीच कौन था ? रतनसिंग " ठाकुरजी विराजे थे । अच्छा बावजी हुकुम ! वहाँ ठाकुर जी का क्या कम था ? कैसी परम्परा है इन मेड़तियों के वहाँ ? भोजराज बोले , स्मरण हो तुमको ? तुम ने कहा की ये क्या टोटका है ? तब मेने कहा की बींद तो येही है और मैं टोटका हूँ ,रतनसिंग " हाँ हुकुम ! याद आ गया तो क्या भाभीसा.........।
भोजराज " हा बचपन में किसी की बारातको देखकर उन्होंने अपनी माँ से पूछा की की यह कौन है ? उन्होंने बताया की की नगरसेठ की बेटी का बींद है । तुम्हारी भाभिसा ने जिद्द की , की मेरा बींद कौन है बताओ । बहुत बहलाने पर भी ये न मानी तो उनकी माँ ने कह दिया की ये गिरधर गोपाल तुम्हारे बींद है।
बस उसी दिन वह बात इतनी गहरी बैठ गयी की ठाकुर जी को आना ही पड़ा , रतनसिंग ने आश्चर्य से भर कर पूछा ठाकुर की को आना पड़ा ? भोजराज बोले हाँ अक्षय त्तियाकी पहली रात उनका विवाह ठाकुर जी के साथ हो गया। रतनसिंग बोले आप को कैसे विश्वास आया ऐसी बिना सीर -पैर की बात पर ?
भोजराज बोले यहाँ से गया पडला ज्यो का त्यों रखा है , मैंने दोनों ही पडले देखे है , पर द्वारका के वस्त्राभूषण इतने मूल्यवान है की अनुमान लगाना कठीन है । और अभी तीज की रात को भी ठाकुर जी पधारे थे , रतनसिंग बोले आप ने देखा ठाकुरजी को ? नहीं किन्तु जो कुछ देखा उससे ज्ञात हो रहा था की वहाँ तीसरा कोई और भी है , भोजराज जी की बातो से रतनसिंग को भी विश्वास हो गया की भाभिसा से मिलने ठाकुर जी आते है....
मेरे तो गिरधर गोपाल दुसरो ना कोई
जा के सिर मोर मुकुट मेरो पति सोयी
जय श्री गिरधर गोपाल
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