Saturday, 29 December 2012

शंकर भगवान "मैया तेरे लाला के हाथ में बहुओ की रेखा इतनी लम्बी है की हाथ में ही नही आ रही ,ठेठ  बाजु तक जा रही है"

शंकर भगवान को पता चला की बाल कृष्ण लाल आने वाले है तो भगवान दर्शन के लिए जाने लगे।
पार्वती ने कहा प्रभु कहा जा रहे हो ?
बोले में नन्द गाँव जा रहा हूँ , बाला कृष्ण लाल के दर्शन करने।
पार्वती जी बोले - " बाल कृष्ण लाल के दर्शन करने जा रहे हो और इस वेश वुषा में ? गले में सर्फ़ डाल कर क्या सपेरे बन कर जाओगे ? हाथ में त्रिसुल डमरू ले कर क्या मदारी बनकर जाओगे ? इस वेश वुशा में बाल कृष्ण का दरसन तो छोडो आप को कोई गाँव में भी नही घुसने देगा ? "
शंकर भगवान बोले - "रे बस कर भाग्यवान जो मुहमें आवे बोले जा रही है!  कैसे  जाऊ ?
पार्वती जी -"इस आगम्बर बागम्बर को छोडो , इस सर्प-गणो को छोड़ो , मैं जो वस्त्र  दूँ  वो पहनो। "
शंकर भगवान को बाल कृष्ण के दर्शनों की चट पटी लगी हुई थी सो बोले- "जो तू कहे वो पहनने को तैयार हूँ ,दर्शन होने चाहिए ।
पार्वती जी ने शंकर भगवान को पीली धोती दी ।
अब शंकर भगवान ने अपने शादी  में भी धोती नहीं पहनी तो  धोती बड़ी अटपटी सी लगी ।
अब जैसे ही शंकर भगवान रवाना हुए तो सर्प गण विनती करने लगे की  - "हे भोले नाथ जब भामासुर आप को भस्म करने आया तब हम कहाँ थे ?"
शंकर बोले - "तब तुम मेरे गले में थे ।"
 सर्प गण बोले - " जब आप ने जहर पिया तब हम कहाँ थे ?"
शंकर बोले- "तब तुम मेरे गले में थे ।"
सर्प गण -" जब रावण ने कैलाश पर्वत उठाया तब हम कहाँ थे ?"
शंकर - "तब तुम मेरे गले में थे"
सर्प गण - "जब आप का विवाह हुआ तब हम कहाँ थे ?"
शंकर - "तब तुम मेरे गले में थे "
सर्प गण- "भगवान जब हमने आप का किसी परिस्थिती में साथ नही छोड़ा तो आज आप हमे छोड़ कर क्यों जा रहे है "
शंकर भगवान बोले - "बात तो तुम्हारी सही है जब तुमने कभी मेरा साथ नही छोड़ा तो में तुम्हे क्यों छोडू "
शंकर भगवान ने तो फिर से वही वेश धारण कर लिया और गले में  सर्प गण को गले में  डाल कर जटाओ  को खोल कर वृन्दावन  पहुचे।
ग्वालियो के बालको ने ऐसा जोगी कभी देखा नही तो ग्वालियो के  छोटे-छोटे बालक शंकर भगवान की जटा खीचने लगे ।
शंकर भगवान बोले - " रे !! मैं शंकर भगवान हूँ । तुम मेरी जटा खिंच रहे हो ?"
शंकर  भगवान् बोले ये छोरे बड़े उत्पाती  हैं ऐसे नही मानेंगे तो एक नाग को पीछे , एक आगे और दो आजू बाजू लगा दिया ।
अब छोरे डरने लगे तो पास में नही आते ।
जब नन्द बाबा के घर पहुचे और मैया को आवाज लगाने लगे ।
"मैया आरि ऒ ऒ ऒ.. मैया ।"
मैया बोली- "रे कौन चिल्ला रहा है? कौन मुझे आवाज लगा रहा है ?"
सखी ने कहा - "पता करके आयूं ।"
 मैया बोली  -" हाँ ।  देख कौन है। "
बाहर आकर देखा  तो बोली- "मैया बाहर भयंकर जोगी आया "
मैया बोली- "जोगी ! कौन हो ? क्या चाहिए? क्यों आये हो ? "
भगवान बोले- " मैया मुझे जो चाहिए वो तु ही दे सके है , मैया!! "
"..क्या चाहिए बाबा तुम को?
 कुछ भिक्षा लाऊ?
कुछ मुद्रा लाऊ?
 बोलो !  कुछ और लाऊ ??
शंकर भगवान  - " मैया मुझे तो तेरे लाला के दर्शन करने है"
 मैया - "हैं ?? लाला के दर्शन करवाऊ तेरे को ? अरे जोगी जब तुझे देख मैं ही डर गयी ,तो मेरा लाला तो और भी छोटा है, वो कितना डर जायेगा "
शंकर भगवान - " मैया बड़ी दूर से आया हूँ । तेरे लाला के दर्शनों की बड़ी आशा ले कर आया हूँ, बड़ा  वृद्ध  जोगी हूँ, तेरे लाला को खूब आशीर्वाद दूंगा, तेरे लाला का जल्दी ब्यांह हो जायेगा। "
मैया बोली- "मेरे यहाँ बड़े-बड़े महात्मा आते हैं।  मैं किसी और  का आशीर्वाद दिला दुंगी पर तेरे जैसे भयंकर जोगी को तो मैं दर्शन हरगिज नही कराउ । शंकर भगवान बोले-  "देख मैया अभी तो मैं विनती कर रहा हूँ , फिर मुझे क्रोध आ जायेगा "
" क्रोध आ जायेगा तो क्या कर लेगा "
" क्रोध आ जायेगा तो तेरे घर के आगे धुनी रमाउङ्गा, भूखा प्यासा रहूँगा " मैया बोली - " चाहे धुनी रमा चाहे धुना रमा, भूखा मर चाहे प्यासा मर मैं तो मेरे लाला का दर्शन नहीं कराउंगी!  नहीं कराउंगी ! नहीं कराउंगी !
शंकर भगवान बोले- "मैया मैं भी जोगी बड़ा हटी हूँ । दर्शन करने आया हूँ तो दर्शन करके जाऊँगा! करके जाऊँगा! करके जाऊँगा! "
अब दोनों में ठण गयी।
इधर स्त्री हट उधर जोगी हट ।
मैया बोली- "चल गोपी अन्दर चल बैठा रहने दे "
मैया भीतर आ गयी ।
अब शंकर भगवान बाहर धुनी रमाते पर कुछ होता नही , शंकर भगवान सोचते की अब तो विनती ही काम आयेगी । भगवान बोले लाला ये तेरी मैया को तो पता नही तेरा मेरा क्या सम्बन्ध है , पर तू तो  जाने   है ना की  में तेरे लिए आया , तू तो  महरबानी कर , ठाकुर जी बोले बाबा आप बड़े जल्दी आये कुछ समय रुक कर आते तो में दोड़ कर आप की गोदी में आ जाता पर अभी तो में खुद मेरी माँ के वश में हु, मेरे रोये बिना तो मेरा कोई काम नही होता ,भूख लगे तो रोऊँ प्यास लगे तो रोऊँ ,

शंकर भगवान बोले लाला भले ही रो पर मुझे तो दर्शन दे ,ठाकुर जी बोले तो  फिर रोना चालू करू ?
बोले ,हाँ , अब ठाकुर जी रोने लगे ,मैया दूध पिलावे ,खिलोने से खिलावे सब प्रकार से खीला पिला के देख लिया पर ठाकुर जी तो चुप ही नही होवे ,
मैया ने सोचा लाला को नजर लग गयी ,मैया " ला रे गोपी जरा राइ डॉन ले कर आ , लाला की नजर उतारू ,गोपी राई डॉन लायी  ,

मैया नजर उतर रही है ,आक्नी-डाकनी, भूतनी-पिचासनि, आजू की बाजू की ,उपरकी निचे की , आड़ोसन की पाड़ोसन की,जिसकी भी नजर लगी उतर जावे पर लाला तो फिर भी रोवे ।
मैया "आखिर क्या हुए है इस छोरे  को ...
गोपी बोली मैया मुझे तोलगे  लाला को बड़ी भारी नजर लगी , ये अपने से उतरने वाली नही ,उतने में बाहर से एक गोपी आई और बोली मैया मुझे तो लगे है  मेने देखा वो जोगी कुछ मन्त्र बोल रहा था , उस जोगी के होठ हिल रहे थे बाहर वो जोगी मन्त्र बोले ओर  भीतर तेरा लाला रोता है ,
शंकर भगवान पर सीधा सीधा इल्जाम.....
मैया बोली तो अब क्या करू ,
बोले उस जोगी को बुला के लाऊं ,बोले हां जा ,
गोपी गयी बोली बाबा कुछ नजर वजर्र उतारनी  आती है ? ,
बाबा बोले नजर ? ऐसे उतारू ऐसे उतारू की फिर कभी नजर ही न लगे ,गोपी बोली  "चल बाबा अंदर चल ?"
 शंकर भगवान  ने मना कर दिया की में घरमे तो नही चालू ,
बोले "क्यों?" ,बोले यशोदा मैया का , घर पुरे दूध दही से भरा है और मेरे गले में सब दूध के ही ग्राहक है अंदर गया और सब निकल -निकल कर चले गये तो इनको कहाँ खोजता फिरूंगा ?
मैया को बोल हम जोगी है किसी गृहशती  के घरमे नही जाते ,मैया को जा कर बोल काम है तो  तू बाहर आ ,
गोपी बोली मैया जोगी बोले माया को काम है खुद बाहर आए ,मैया लाला को पीताम्बर में ढक कर लायी ,बोले "बाबा नजर उतार"
बाबा बोले "मैया दूर से मेरा मन्त्र काम नही करता तेरे लाला को मेरे हाथ में दे तो मेरा मन्त्र काम करे
ठाकुर जी और जोर-जोर से रोने लगे की दे दे ! दे दे!
 लाला के रुदन का स्वर तेज देख कर मैया  बोली अरे ले बाबा ले
जैसे ही  ठाकुर जी शंकर भगवान के हाथ में गये रोना एक दम चुप !
मैया  बोली " रे जोगी बड़ा पहुच वान है छोरा कब से रो रहा था , और जोगी की गोदी में जाते ही चुप हो गया
मैया बोली बाबा अब मेरे लाला को कभी नजर तो नही लगेगी न?
बाबा बोले "मैया एक तो तेरा छोरा काला,   नजर लगने की सबसे पहली संभाना तो ये खुद है और दूसरा तेरे लाला इतना सुनदर है की जो एक बार इसको देख लेगा फिर उसको सब तरफ तेरा लाला ही नजर आएगा ......
उतने में बाबा के गले के सर्प लाला के चरणों को स्पर्श करने लगे ,
 मैया बोली अरे बाबा तेरे गले का साप मेरे लाला के पेरो से लिपट रहे है ,
शंकर  भगवान - " मैया ये लिपट  नही रहे है ये विनती कर रहे है की प्रभु आप अपने इन्ही चरणों से हमारे  मित्र का भी उधार करना .... ये कालिया नाग की बात कर रहे है ,
मैया बोली बाबा आप को हाथ - वात  भी देखना आता है ?
बाबा बोले किसका ?
बोले मेरे लाला का ।
बाबा -  हाँ हाँ ..हाथ देख रहे है । बोले "आरि मैया तेरा लाला तो  बहुत बड़ा राजा बनेगा
"हैं ?? "
 "हाँ , आरि मैया तेरा लाला तो, सोने की नगरी का राजा बनेगा "
"हैं?"
"हाँ आरि मैया तेरा लाला तो धर्म सम्राट बनेगा"
"अच्छा ??"
"हाँ , आरि मैया तेरा लाला तो सब राजाओं का गुरु बनेगा "
मैया बोली " अरे बाबा कुछ काम की तो बात तो बोलो"
शंकर भगवान बोले मैया तेरा लाला राजा  बनेगा ,धर्म सम्राट बनेगा  ,सब राजाओं का गुरु बनेगा ,और क्या काम  की बात होगी?
मैया बोली "राजा  बनेगा तो  ये सम्राट बनेगा तो ये गुरु बनेगा तो ये ,मेरे काम ये नही आने वाला , मुझे तो ये बताओ  की मेरे लाला का बियांह  कब  होगा  बहू कब आएगी मेरे काम तो बहु आईगी, ये  नही आएगा
 बाबा क्या बताऊ मुझसे रसोई  नही बनती
मैं रशोई बनाती वो धोक्नी ले कर फु-फु हवा करती हूँ , तो सब धुआ आख में चला जाता है , क्या बताऊ  बाबा बहु आ जाये तो थोडा काम हल्का हो जाये , शंकर भगवान बोले मैया बहुओ का तो तेरे ठाठ रहेगा ,
बोले क्यों दो बहुएं  आयेगी?
 बोले " नही "
"तो कितनी आएगी ,?
 शंकर भगवान बोले मैया तेरे लाला के हाथ में बहुओ की रेखा इतनी लम्बी है की हाथ में ही नही आ रही ठेठ  बाजु तक जा रही है"
 "हे!!  इतनी कितनी बहुएं  आएगी?"
 बोले मैया   सोलह हजार एक सो आठ बहुए आएगी  ,
मैया सोच में पड गयी
बाबा बोले मैया तू कहा खो गयी
 मैया बोली में सोच रही हु की अगर दिवाली के मोके पर सब एक साथ मेरे पाव पड़ने आगयी तो मेरा क्या हाल होगा
शंकर भगवान बोले मैया तू चिंता मत कर तेरे लाला सब देख लेगा तू तो  तेरे इस रत्न को संभाल  ,क्या रत्न है मैया क्या बताऊ
ठाकुर जी बोले बाबा कुछ मत बोलो आप को दर्शन दे दिया इसका मतलब  ये नही की आप मेरी मैया के सामने मेरी पोल खोलो , बाबा दर्शन करके बहुत प्रसन्न हो कर चले...............जय श्री राधे

Thursday, 20 December 2012

ऊधो मन न भये दस बीस एक होतो सो गयो श्याम संग अव को अवरादे

कहा घनश्याम ने ,हे ऊधो वृन्दाबन ज़रा जाना ,वहा कि गोपियों को ज्ञान का कुछ तत्व  समझाना ,
विरह कि वेदना मै वो सदा आंसू बहाती है , तड़पती है ,सिसकती है ,मुझको याद करती है ,
तो ऊधो हँस कर कहा ,मै अभी जाता हूँ वृन्दाबन ! ज़रा मै भी ,तो देखू केसा है ये प्रेम का बंधन !
वो केसी गोपियाँ ,जो ज्ञान बल को कम  बताती है ,निर्थक प्रेम लीला का , सदा गुणगान गाती है ,
तो चले मथुरा से कुछ दूर, वृदाबन निकट आया  , वही से प्रेम ने, अपना अनोखा ,रंग दिखलाया !
उलझ कर वस्त्र मै कांटे लगे ऊधो को , समझाने.... ! मानो वो वृक्ष  कह रहा है , की हे ऊधो ये प्रेमियों की भूमि है ,यहाँ पर तुम अपने ब्रह्म ज्ञान के हंकार के साथ मत जा ,नही तो तुम्हारा ब्रह्म ज्ञान चला जायेगा ,
उधव बोले नही में सब देख लुगा ,में इन गोपियाँ को सब भुला दुगा ,और किसी और ब्रह्म में मन लग्वा दुगा ,
श्री उधव जी महाराज इस भाव से गए , लेकिन जैसे ही वह जाकर गोपियाँ का अध्भूत प्रेम देखा तो ,पहले तो गोपियाँ को प्रश्ताव दिया की हे गोपियाँ तुम इस प्रकार ब्रह्म में मन लगाओ , इस ब्रह्म का चिन्तन करो ,एसे ब्रह्म में ध्यान करो ,
पर गोपियाँ ने तो एक बात एईसी गजब की कही ,की उधव का सब ज्ञान गया ,गोपियाँ ने कहा उधव तुम कहो जिस ब्रह्म का चिन्तन करने को हम तैयार है ,एक काम तुम हमारा करदो ,
बोले क्या ?
"बोले बिना मनके तो किसी ब्रह्म का चिंत नही हो सकता , बोले नही हो सकता , बस हमारा मन उस कन्हैया के पास है ,तुम हमारा मन हमे लाकर देदो फिर तुम कहो जिस ब्रह्मका चिन्तन करने को तैयार है ..
उधो मन न भये दस बीस एक होतो सो गयो श्याम संग अव को अवरादे.....
हे उधो एक मन था वो तुमारा चोर ले गए कन्हैया ,अब हम किस मनसे चिंतन करे .........
उधवजी ने तो हाथ जोड़े , की अब में नमन करता हु इन गोपियाँ के चरण रज को ......
ज्ञान बजाई दुग्दुगी ,विरह बजाया ढोल उधो सूधो रह गए सुन गोपियाँ के बोल...
उद्व जी ने गोपियाँ को अपना गुरु बना लिया ,
अगर किसी गोपि की चरण रज को माथे पे लगाने को मिल जाये ,तो भगवान में अपने आप प्रेम हो जाता है ...जय श्री राधे 


नारद जी ने एक बार भगवानसे पूछा की हे प्रभु आप अपने नाम के पीछे वैकुंठनाथ  लिखते हो ,पर वैकुंठ में तो आप रहते ही नही, .......आप का पक्का पता तो बताओ प्रभु ? नही तो हमे ऐसे ही आपको ढूंडनेमें इधर उधर भटकना पड़ता है .भगवान खुद कहते है , { ना हम वसामि वैकुंठे योगी नोर्ह्राद्यनचय मद भक्ताय......} जहा मेरे भक्त मुझे गाते है में वही रहता हु वैकुंठ नाथ तो खली मेरा नाम है , बाकि मेरा असली ठिकाना तो जहा मेरे भक्त { हरीनामाचागज } जहा मेरे नामकी गजल लगाते है , मिलके मेरे नामका संकीर्तन करते है में वही रहता हु......
"लक्ष्मीजी भगवान से हमेसा इसी बातका झगड़ा करती की आपने वैकुंठ तो बहुत सुन्दर बनादिया पर आप खुद तो वैकुंठ में रहते ही नही ,कभी किसी भक्त के यहाँ , कभी किसी भक्त के वहा , सब दिन नग्गे पैर भागते फिरते हो.....?
 भगवान बोले क्या करू लक्ष्मी में अपने भक्त के प्रेम बंधन में बंद जाता हु वो अपना सबकुछ मुझे अर्पण करके मुझे अपने अधीन कर देते है , इस लिए कही  कही तो मुझे चोकिदारी भी करनी पड़ती है......
 एसे कृपा सागर को छोड़ हम संसारी माया से लिप्त रहते है.... सच में हम उनकी माया से ठगे जाते है... 

  { जय जय श्री राधे  }
 


बाणों की शय्या पर लेटे भीष्म पितामा  कहते है की हे  गोविन्द में अपनी आत्मारूपी कन्या का विवाह तुम से करना चाहता हूँ....

भीष्म पितामाँ  - "हे केशव! कोरवों का पांड्वो पर अत्याचार देखकर मैं  सबकुछ छोड़ छाड़ के वन को जाने वाला था पर मेने सुना की महाभारत युद्ध होने वाला है और कोरवो की तरफ नारायणी सेना है और  पांड्वो की तरफ  अकेले  कृष्ण तो मेने मन बदल दिया।
 भीष्म पितामाह - " जब मेरे  सामने प्रस्ताव आया  की आप किसकी तरफ से युद्ध करोगे ?  तो मेने सोचा अगर में पांड्वो की तरफ से युद्ध लड़ना  स्वीकार  करूँगा  तो पांडवो की तरफ युद्ध लड़ते समय मुझे बार-बार कृष्ण दर्शन करने के लिए मुड़-मुड़ के देखना पड़ेगा ,लेकिन अगर में  कोरवों की तरफ से युद्ध करना स्वीकार करूँगा तो मुझे कृष्ण दर्शन एक दम सामने होगा । कृष्ण दर्शन के लालसा में ही मेने कोरवो का साथ दिया।"
"लोग मुझे पापी कहे तो कहे!
अधर्मी कहे तो कहे! "
भीष्म पितामा कहते है की  -"क्या करू गोविन्द बुढ़ापे  में एक गड़बड़ हो गयी मेरे से !
हे गोविन्द !
बुढ़ापे में मेरा मन बिगड़ गया ।"
आजन्म ब्रह्मचारी और मन बिगड़ने की बात कर रहे है ??
 ब्रह्मचारी के लिए प्रेम श्रृंगार की बाते उपयुक्त नही होती।
पर भीष्म पितामा कहते है "जबसे तुझको  देखा केशव  ब्रहमचर्य  तो भूल गया और मन दिनरात तेरे स्वरूप माधुर्य में रमण करने लगा की ।
कृष्ण बोलते कितना मधुर  है , कृष्ण हँसते कितना सुन्दर है ,कृष्ण के नेत्र कितने सुन्दर , इसी का में बार-बार चिंतन करने लगा ,इस कारण मेरे मनका तो ब्रहमचर्य बिगड़ गया ।
हे केशव ये तो अच्छा हुआ की तुम लाला ही  बनके आये , लाली बनके नही आये ।
अगर लाली बनके  आ जाते तो फिर ये दादा भीष्म बुढ़ापे में बदनाम हो जाता की बूढा  दादा छोकरी के पीछे चला गया ।  (नन्द के लाल तुम होते लाली तो गले कट जाते  करोड़न के )
लोग इसीलिए लड़ मरते की इसके साथ मैं विवाह करू, मैं विवाह करूँ ।"
"हे गोविन्द जाते जाते में इस बात को कबूल करके जाता हूँ  की मुझे तुमसे प्रेम हो गया ,भीष्म पितामा  ने मृत्यु को महोत्सव बना दिया , मोज बना दिया।
 भीष्म पितामा बोले  " हे केशव अब मुझे मेरी बेटी की शदी की चिंता है ।
 ये बात सुन अर्जुन नकुल सहदेव भीम युधीष्ठीर  सोचने लगे की ये बूढा  दादा अखंड ब्रह्मचारी ये फिर बेटी कहा से लाया ? "दादा आप की बेटी ?
"हा मेरी बेटी...."- भीष्म पितामाँ कहते है
हर आदमी का कर्तव्य होता है की वो प्राण निकलने से पहले-पहले अपनी जिम्मेदारी को पूरा करके जाये । मेरी भी एक जिमेदारी है की मेरी एक कन्या कुवारीं है।  केशव तुम उससे विवाह कर लो  ,तो में निश्चिन्त हो कर मरुँ ।
 हे गोविन्द मेरी आतामरुपी  कन्या के तुम पति बन जाओ ।
केसव मेरी आत्मा को तुम स्वीकार करलो।    
भगवान  श्री कृष्ण कहते है- " मैं  तैयार हूँ ।"

( दादा भीष्म ने नेत्र बंद किये और दादा भीष्म की आत्मा श्री कृष्ण परमात्मा के चर्नार्विंद  में लीन हो गयी )
                             जय श्री राधे 


Tuesday, 4 December 2012

मीराबाई बोली हे महाराज आपसे सवाल युही मुप्त में नही पुछू , खूब दक्षिणा दूंगी........

मीराबाई कथा सुनने अपने दादोसा के साथ प्रत्येक कथा में जाती तो ,जब महाराज कहते की किसी को कुछ पूछना हो तो पुच्छ लेना , कथा सुनने वाले सब शोता चले गए ,महार
ाज ने देखा की एक मीराबाई बेठी है

महाराज बोले सब चले गए ,और तुम बेठी हो ? मीराबाई बोली महाराज आपने कहना की किसी को कुछ पूछना हो तो पुच्छ लेना ,तो में कुछ पुच्छ ने बेठी हु , महाराज बोले इतने बड़े बड़े लोग सब चले गए तेरे दादोसा खुद उठ कर चले गए जिसने कुछ नही पूछा तू क्या पूछ जाने ,बोले महाराज सवाल छोटा है ...
महाराज बोले तो पूछ ,जब मीराबाई बोली ,श्याम से मीलन कब होसी ओ मारा जुना जोसी , कन्हैया मिलन कब होसी ,महाराज बोले बेटी सवाल छोटा है पर उत्तर बड़ा..
मीराबाई बोली हे महाराज आपसे सवाल युही मुप्त में नही पुछू , आओ जोशीजी मेरे आन्गनिये बिराजो ,बाँच पढ़ादू थारी पोती.... पाँच मोहर की जोसी दक्षिणा दिलादु , पैरन ने पीताम्बर धोती ,खीर खांडरा जोसी मृत भोजन , सारा तो जिमाई दू थारा गोति , दूध पिवाने जोसी गाय दिलादू ,हिरासु जड़ादू थारी पोती...
खूब दक्षिणा दूंगी महाराज ,आपतो इतना बता दो, की मेरे प्रिय प्रीतम से मेरा मिलन कब होसी मेरे हरिसे मिलन कब होसी ......
महाराज बोले बेटी अगर में तेरे सवाल का उत्तर न दू तो तुम्हे को नाराजगी तो नही है ? मीराबाई बोली महाराज , नाराजगी कैसी आप नही तो कोई और देगा ,पर मेरे जीवन का प्रत्यियेक कथा में एक ही सवाल रहेगा , की हरी से मिलन कब होसी ,अबतो हरी मिलिया ही सुख होसी

मीराबाई ने बहुत से सादु संत महात्माओ से पूछा की कोई तो बतादो मेरे श्याम से मेरा मीलन कब होगा , पर भगवान से मिलने का समय कोई नही बता पाया.....

ऊधो मन न भये दस बीस एक होतो सो गयो श्याम संग अव को अवरादे

कहा घनश्याम ने ,हे ऊधो वृन्दाबन ज़रा जाना ,वहा कि गोपियों को ज्ञान का कुछ तत्व  समझाना ,
विरह कि वेदना मै वो सदा आंसू बहाती है , तड़पती है ,सिसकती है ,मुझको याद करती है ,
तो ऊधो हँस कर कहा ,मै अभी जाता हूँ वृन्दाबन ! ज़रा मै भी ,तो देखू केसा है ये प्रेम का बंधन !
वो केसी गोपियाँ ,जो ज्ञान बल को कम  बताती है ,निर्थक प्रेम लीला का , सदा गुणगान गाती है ,
तो चले मथुरा से कुछ दूर, वृदाबन निकट आया  , वही से प्रेम ने, अपना अनोखा ,रंग दिखलाया !
उलझ कर वस्त्र मै कांटे लगे ऊधो को , समझाने.... ! मानो वो वृक्ष  कह रहा है , की हे ऊधो ये प्रेमियों की भूमि है ,यहाँ पर तुम अपने ब्रह्म ज्ञान के हंकार के साथ मत जा ,नही तो तुम्हारा ब्रह्म ज्ञान चला जायेगा ,
उधव बोले नही में सब देख लुगा ,में इन गोपियाँ को सब भुला दुगा ,और किसी और ब्रह्म में मन लग्वा दुगा ,
श्री उधव जी महाराज इस भाव से गए , लेकिन जैसे ही वह जाकर गोपियाँ का अध्भूत प्रेम देखा तो ,पहले तो गोपियाँ को प्रश्ताव दिया की हे गोपियाँ तुम इस प्रकार ब्रह्म में मन लगाओ , इस ब्रह्म का चिन्तन करो ,एसे ब्रह्म में ध्यान करो ,
पर गोपियाँ ने तो एक बात एईसी गजब की कही ,की उधव का सब ज्ञान गया ,गोपियाँ ने कहा उधव तुम कहो जिस ब्रह्म का चिन्तन करने को हम तैयार है ,एक काम तुम हमारा करदो ,
बोले क्या ?
"बोले बिना मनके तो किसी ब्रह्म का चिंत नही हो सकता , बोले नही हो सकता , बस हमारा मन उस कन्हैया के पास है ,तुम हमारा मन हमे लाकर देदो फिर तुम कहो जिस ब्रह्मका चिन्तन करने को तैयार है ..
उधो मन न भये दस बीस एक होतो सो गयो श्याम संग अव को अवरादे.....
हे उधो एक मन था वो तुमारा चोर ले गए कन्हैया ,अब हम किस मनसे चिंतन करे .........
उधवजी ने तो हाथ जोड़े , की अब में नमन करता हु इन गोपियाँ के चरण रज को ......
ज्ञान बजाई दुग्दुगी ,विरह बजाया ढोल उधो सूधो रह गए सुन गोपियाँ के बोल...
उद्व जी ने गोपियाँ को अपना गुरु बना लिया ,
अगर किसी गोपि की चरण रज को माथे पे लगाने को मिल जाये ,तो भगवान में अपने आप प्रेम हो जाता है ...जय श्री राधे

Monday, 19 November 2012

जिस की बात कभी रद्द न हो उसका नाम नारद है ।

एक दिन नारद जी कैलाश  पर्वत पर पहुचे ,पार्वती जी को देखा और कहा "कहो माता सब कुछ ठीक तो है, सब आनंद से तो चल रहा है ना " ।
पार्वती जी -"अरे नारद तू मुझसे क्या पूछ रहा है की  सब कुछ कुसल तो है ,अरे मैं  महादेव की पत्नी हूँ  हमारे तो सब कुछ आनंद से ही है भला हमे क्या होगा ,बताओ तुमने कैसे पूछा"।
नारद जी मुस्कुराते हुए -"माता मेने तो ऐसे ही पूछ लिया"।
पार्वती जी को लगा की इस देव मुनि की हंसी में कुछ रहस्य है  , "बताओ नारद क्या बात है?"।  नारद  - "माता मेने तो ऐसे ही पूछ लिया था। 
माता -"नही नारद ऐसे ही तुम कुछ पूछते ही नही, बताओ क्या बात है?" ।

नारद जी  - " माता आपको भोले बाबा सब बताते तो हैं  ना ?"।
पार्वती जी -"ये तो भोले नाथ है ये क्या छुपायेंगे इनको तो कुछ छुपाना आता ही नही ,ये तो सब रहस्य बता देते है"।
नारद -"माँ सब तो बताते है पर एक बात अभी तक नही बताई है"।
माता-"एक बात ,क्या बात कौनसी बात?"।
नारद जी-"माता ये शंकर भगवान के गले में जो खोपडिया है वो किसकी है आप को पता है?"
पार्वती जी-"मुझे तो पता नही । ये तो अगोरी बाबा ,है कुछ भी गले में डाल देते है
नारद- "कुछ भी गले में डाल देते है तो ये खोपडिया ही क्यों डालते । फल , फूल तो नही डालते ,माँ ये खोपड़ीया किस की है बताऊँ?"
माता- "हां बताओ"
नारद - "माँ ये खोपडिया सब आप के सोतो की है" ।
पार्वतीजी- "अब ये मेरे सोते फिर कहा से आ गयी"
नारद जी- "माँ आप से पहले भोले बाबा का विवाह हुआ जिसके साथ में विवाह हुआ वो मर गई  उस मरी हुई पत्नियों से इतना प्रेम था की उनकी खोपड़ी भी अपने गले में लत कए हुए रखते है"
नारद मुनि की बाते माँ पर असर कर गई ,और रुष्ट हो कर बैठ गई । जब शंकर भगवान  की समाधी खुली तो रोज तो माता आरती की थाली ले कर भोले बाबा की आरती में खड़ी रहती थी, पर इस बार बाबा ने देखा की पार्वती जी नहीं है ,भगवान ने नन्दीश्वर से पूछा तो ,नन्दीश्वर बोले आज माता रुष्ट है ,भोले बाबा घर पहुचे और बोले "देवी क्या बात है ,क्यों रुष्ट हो कर बैठी हो ?"
पार्वती जी- "नही जी मुझे आप से बात नही करनी"
शिवजी- "देवी अपने जीवन में सब कुसल से चल रहा था आज अचानक ये तुम को क्या हो गया माता - "नहीं जी मुझे आप से बात नही करनी आप तो मुझ से बात छुपाते हो"
शिवजी - "अब मैंने क्या बात छुपाई?"
माता- "अच्छा बताओ ये आप के गले में खोपडिया है वो किसकी है?"
बाबा-"अरे आज ये खोपड़ी की कैसे सूझी? कभी नही पूछा तुमने  आज अचानक इस खोपडिया की याद  कैसे आ गई?"
माता- "वो तों भला हो नारद का जो बता गया वरना मुझे तो पता ही नही चलता ।"
शंकर जी  - "नारद बता गया तब तो काम पक्का है ,अब तो इसे बताना ही पड़ेगा ।"
बाबा बोले-  "देवी तुम इतना पुछ रही हो तो सुनो ये खोपडिया किसी और की नही ये सब खोपडिया तुम्हारी ही है । तुम हर जन्म में मेरी पत्नी बनी और हर बार मरते समय यही विनती करती की मैं  आप की ही पत्नी बनूँ। तुम्हारे प्रति मुझे प्रेम होने से मैंने ये सारी खोपडिया अपने गले में डाल रखी है"
माता बाबा के चरणों में गिर पड़ी और बोली- " हे नाथ !  मुझे इतनी बार जन्म लेना पड़ा और मरना पड़ा अब आप ऐसा कुछ कीजिये जो मेरा जन्म मरण का अवागम छुट जाये"
तब बाबा बोले- "देवी मैं तुम्हे अमर  कथा सुनाता हूँ ताकी तुम्हारा जन्म मरण छुट जाये"।
तब शंकर भगवान   माँ को अमर  कथा सुनाने लगे पर बिच में निंद्रा आने के कारण माँ अमर कथा नही सुन पाई ।

Monday, 5 November 2012


हरे कृष्ण सदा कहते कहते , मन चाहे जहा वहा घुमा करू
मद मोहन रूप का पीकर के , उसमे उन मत हो  झुमा करू
अति सुन्दर वेस व्रजेस तेरा , रमा रोम ही रोम में रुमा करू
मन मंदिर में बिठला के  तुझे , पग तेरे निरंतर चूमा करू
जय श्री जी दया मई राधे , में तेरी शरण श्री जी तेरी शरण
              {
जय जय श्री राधे }

Sunday, 4 November 2012

 गोपियाँ व श्री कृष्णा का मिलन ही आत्मा व परमात्मा का मिलन है 

श्याम सुन्दर की बांसुरी सुनकर गोपिय ठाकुर जी के पास पहुची तो , ठाकुर जी ने थोड़ी देरतो बांसुरी बजाई , और बाद में वेणु नाद रोक कर गोपियाँ का स्वागत करने लगे,
{ स्वागत्म्बो महा भागो } हे महा भागिनी भग्य शालिनी गोपियाँ तुम्हारा स्वागत है, कहो में तुम्हारी प्रीति के लिए क्या करू ? गोपियाँ को ये दो बाते तो बहुत अच्छी लगी , की श्याम सुनदर हमारी कुसल पूछ रहे है ,हम्हारे मनोरथ पूरा करने की भी चिंता कर रहे है ,

 
 पर पीछे से दो बातो ने सब गड़बड़ कर दिया  , ठाकुर जी बोले आरी गोपियाँ कहो इतनी रात को कैसे आना हुआ , व्रज में सब कुसल तो है न ? तुम्हा इस समय यहा आने का कारण क्या है ? कोपियाँ से कारण पूछा तो गोपियाँ के अरमानो पर तो जैसे कोई पाला पड़ गया हो..जैसे आप को घर बुला कर कहे  की कहो क्यों आये हो ,तो इस से बढ़कर और क्या अपमान होगा ?

गोपियाँ कहती है, हे श्याम सुन्दर क्या आप ने बांसुरी बजा कर हमे नही बुलाया हम जीस संसार को भुला कर तुम्हारे चरणों का आश्रय करने आई है , और तुम हमसे उसी संसार की कुसलता पूछ रहे है ,


हे श्याम सुन्दर एक तरफ तो तुम हमसे कहते हो की सबकुछ छोड़ कर मेरे पास आओ , और जब हम सबकुछ भुला कर तुम्हारे  पास आई है , तो अब तुम उसी संसार की यादी दिलाते हो , कहते हो की क्यों आई ? तुम हमसे कारण  पूछ ते हो ?  तुमारी बांसुरी सुनकर ह्म्हारा चित तो घरके धंदे में गलत नही है , हे श्याम सुन्दर  क्या तुमने हमे बांसुरी बजा कर नही बुलाया ? पहले तो बांसुरी बजा कर हमारा मन हरण करते हो... और फिर कारण  पूछते हो ? 

"ठाकुर जी बोले अरि गोपियाँ  मेतो तुमसे हसी कर रहा था , ये देखने के लिए की तुम आ तो गयी हो , पर कही तुम्हारा मन संसार में तो रमा हुआ नही है ,अगर संसार में रमा हुआ होगा, तो तुम मुझसे अपने सास ससुर पति पुत्र की कुसलता कहोगी .ये देखने  के लिए की कही तुम्हारा  मन संसार में तो रमा हुआ नही है ....आओ _आओ गोपियाँ में कोई तुमको थोड़ी छोड़ सकता हु ,आओ नृत्य  करे ,
और हर गोपी के साथ एक एक श्याम सुन्दर नृत्य कर रहे है .....
      {  जय जय श्री राधे }


Monday, 29 October 2012

आज के ही दिन  श्री कृष्णा ने गोपिय को रास के लिए आमन्त्रित किया था....

आज के दिन ही चंद्रमा अपने सौंदर्य के चरम पर होता है। मान्यता है कि इस रात्रि को चांदनी के साथ अमृत वर्षा होती है
सायद आप सभी जानते ही होंगे की आज के दिन चंद्रमा ने अमृत क्यों बरसाया ? क्यों की सर्द पूर्णिमा की रात सबसे पवित्र रात है , हजारो साल से परमात्मा के प्रेम की प्यासी उन आत्मा और परमात्मा का मिलन हुवा , भगवान श्री कृष्णा ने गोपिय के साथ रास लीला की थी,वो रास इतना पवित्र था की देवताओ ने अमृत की बरसा की..

इस रास में कई लोग देह को जोड़ लेते है , की भगवान ने रास के माध्यम से भोग किया  ,जो लोग  मानते है की कृष्णा का रास भोग है , तो वो एक बात बताये , की क्या सरीर के बिना भोग हो सकता है ? .. सरीर हाजिर हो मन हाजिर न हो तो भी क्या भोग हो सकता है ? नही हो सकता

अब आप गोपिय के हाल देखिये गोपी क्या कर रही है , काजल लिया आँख में लगा ने के लिए , पर कालज गाल पे लगा रही है , अगर उसको सरीर की चिंता होती तो क्या कालज गालपर लगाति ? चुनडी  ली और उलटी ओढ़ रही है ,उन्हें देह की सुध होती तो क्या चुनडी उलटी ओठ्ती ? , गैया दुह ते  - दुह ते  बासुरी की आवाज सुनाई दी तो  गाय के बछड़े की जग अपने बच्चे को कस के बांध लिया ,उसी समय गोपी की सास  आई और बोली क्या कर रही है  ? बच्चे को मारेगी क्या ?, अगर गोपी का मन ठिकाने होता तो क्या वो अपने बच्चे को बांद ती ? गोपी न तो सरीर में रमण कर रही है , और ना ही गोपी का मन हाजिर है , और उल्टा , फूलटा श्रंगार करके झुण्ड के झुण्ड जा रही है पर किसी को किसी की खबर नही है , हर गोपी यही सोच ति है की में अकेली ही जा रही हु ,
ऐसा क्यों हुआ ? क्यों की ये किसी स्त्री या पुरुष का मिलन नही था वोतो आत्मा व परमतमा का  मिलन था ....

एक दीपक जलता है जो दिशाये  तो बहुत सी होती है ,पर उनका जुडाव ऊपर की तरफ ही होता है , उनका जुडाव सूर्य से ही है....ठीक उसी तरह ,गोपी की आत्मा का जुडाव एक परमात्मा से ही है.......

कई लोग कहते है की कृष्णा की बांसुरी सुनकर गोपियाँ में काम पैदा हुआ,जरा द्रष्टि व सोच को पवित्र कीजिये ...गोपियाँ  कृष्णा के पास  इसलिए नही गयी थी की उनमे काम पैदा हुआ .. अगर काम पैदा होता तो उनके लिए तो वो अपने पति के पास भी जा सकती थी , फिर वो श्याम सुनदर के पास क्यों गयी ? , गोपियाँ के ह्रदय में काम पैदा नही हुआ..बल्कि .गोपियाँ  के ह्रदय में श्री कृष्णा के दर्शन की कामनाये पैदा हुई  ..ये गोपिय कोई साधारण गोपियाँ नही थी ....

ये गोपिय सब भगवान श्री राम जन्म के समय ,जो ऋषि मुनि ऋषियों की पत्निया  जितने भी भगवान श्री राम के प्रेमी थे व सब वृन्दावन में श्री कृष्णा अवतार में , कोई गोपी , कोई ग्वाले कोई मोर व् सभी पसु पक्षी के रूप में जन्म लिया .....
{ जय श्री राधे राधे }


Friday, 26 October 2012

ठाकुर जी बोले सखी मेतो ठहरो सीधो पर एक चेटी तेरे जैसी चंचल थी ......
एक दिन ठाकुर जी ने ग्वालबालो से कहा की आज तो हम प्रभा काकी के यहाँ माखन चोरी करने चलेंगे ,एक ग्वालियाँ ने कहा की लाला फिरतो आज हम एकादशी करेंगे ,ठाकुर जी बोले क्यों ? बोले लाला तुजे पता नही है प्रभा गोपी कैसी है .एक हाथ की कमर पे पड़ जावे तो पाच दिन तक गर्म नमक का सेक करना पड़ता है ,"ठाकुर जी बोले तुजे कैसे पता ? बोले में उसका पति हु, भुगत भोगी हु "ठाकुर जी बोले तू उसका पति है तो हमारी मण्डली में क्या कर रहा है ? बोले मुझे भी खाने को कुछ देती नही  तो मुझे भी  तुम्हारी मण्डली में आना पड़ा  ,
ठाकुर जी कहते मेने तो आज जय करलिया , मेतो प्रबावती गोपिके यहाँ ,जाऊंगा , सो जाऊंगा ,

गोपियाँ मैया से शिकायत बहुत करती थी ,तो मैयाने ठाकुर जी के पग में नुपुर पहना दिए ,और गोपियाँ से कहा की जब मेरा लाला तुम्हारे यहाँ माखन चोरी करने आवे तो घुघरू की छम छम की आवाज आये तब तुम मेरे लाला को पकड लेना ,ठाकुर जी देखा की गोपिके  घर के बाहर  गोबर पड़ा है ,ठाकूर जी उस गोबर में दोनों पैर डाल कर जोर जोर से कुदे तो घुंघुरु में गोबर भर गया ,और आवाज आना बंद हो गयी ,

अब ठाकुर जी धीरे _ धीरे पाव धरते हुवे ,दोनों हाथ मटकी में ड़ाल कर माखन खाने लगे ,तो गोपी पीछे ही खड़ी थी ,और पीछे से आकर ठाकुर जी को पकड़ा ,ऐ धम ,ठाकुर जी बोले रे ये कौन  आ गयी ,पीछे मुड़के देखे तो गोपी! ठाकुर जी बोले ओ गोपी तुम ,गोपी बोलिरे दारी के चोर कहिके चोरी करने आया ,ठाकुर जी बोले मेने चोरी कहा की , नहीं में चोरी करने नही आया ,मेतो मेरे घर आया ,गोपी बोली ये तेरा घर जरा देख ? ..ठाकुर जी ने ऐषी भोली सी सकल बनाई ,और इधर उधर देख के बोले

 अरे सखी क्या करू मुझे तो कुछ खबर ही नही पड़ति ,क्या बताऊँ दिन भर गैया चाराता हु और श्याम को बाबा के साथ हथाई पे जाता हु , इतना थक जाता हु की मुझे तो खबर ही नही पड़ती  ,की   मेरा घर कौनसा , तेरा घर कौनसा .... कोई बात नही गोपी तू भी तो मेरी काकी है ,तेरा घर सो मेरा घर , तेराघर सो मेराघर .गोपी बोली रे कबसे तेराघरसो मेराघर बोले जा रहा है , एक बार भी दारी के ये नही कहें  की मेराघरसो तेराघर ,बड़ा चतुर है ,चोरी करता है ?

बोले सखी मेने चोरी नही की ,गोपी बोली लाला अगर तेने चोरी नही की तो तेरे हाथो पे माखन कैसे लग गयो ,ठाकुर जी बोले सखी वोतो में भीतर आयो तो देखा की मटकी पे चीटिया चिपक रही है ,तो मेने सोचा की मेरी मैया को सूजे ना है !संध्या के समय मैया माखन के संग संग चीटिया न परोस देगी ! बाकि मेने खाया तो नही ,

सखी बोली लाला तेने खाया नही तो तेरे मुख पे कैसे लग गयो ? , बोले सखी मेतो ठहरो सीधो पर एक चेटी तेरे जैसी चंचल थी ,वो मेरे जंघा पे छड़ी , मेने कछुना कियो मेरे पेटपे छड़ी मेने कछुना कियो पर मेरे मुख ते छड़ी तो खुजली होने लगी तक खुजली करते हुए माखन मुह पे लग गयो , बाकि मेने खाया तो नहीं ,गोपी बोली .आज में तोहे छोड़ ने वाली नही हु ,

ठाकुर जी बोले सखी मोहे जाने दे , सखी मोहे छोड़ दे, सखी अब कभी चोरी नही करूँगा ,सखी तेरी कसम ,सखी तेरे बाबा की कसम , सखी  तेरे भैया की कसम , सखी  तेरे फूफा की कसम सखी तेरे भुआ की कसम ,सखी तेरे मामा की कसम ,सखी तेरे खसम की कसम ,अब कभी चोरी नही करूँगा ..गोपी बोली रे सारे मेरे रिश्तेदरो को ही मार रहा है ,एक, दो , तो तेरे भी नाम ले , ठाकुर जी की कोमल वाणी से गोपी को दया  आ गई की छोटो सो लालो है सायद घर भूल गया होगा ..और ठाकुर जी बच निकले ,ऐसे है ये माखन चोर .....

Thursday, 25 October 2012

सभी भक्तो को  विजई दसमी की हार्दिक  शुभकामनाए..

आज विजय दसमी है , जो हम सब जानते है की बुराई  पर अच्छाई की जीत हुई थी ...रावण को हम हर साल झलाते है जो बड़े उत्साह से कहते है ,की रावण का अंत हो गया ,और एक ऐसे इन्सान को जलाने  का अधिकार देते है , जिनके भीतर रावण जैसे अव गुण भरे पड़े है ,अगर ऐसा नही है,तो राम राज्य क्यों नही आ रहा है ! हमारे देस में ,

रावण को तो पता था की में अधर्मी हु , पापी हु तामसी  सरीर है, इस सरीर से भगवान को तो भजा जा सकेगा नही , इसलिए सीता मैया का हरण कर  नारायण से हठ पूर्वक वैर करके अपने आप को व् पुरे परिवार को नारायण के हाथो मुक्ति दिलादी थी , रावण ! रावण होकर भी भगवान से प्रेम करता था , उनकी मयिमा जनता था , सब देवताओ को अपने वशमे करने की शक्ति प्राप्त की थी , देवता उनके आगे पानी भरते थे जिनकी सोने की लंका थी उस रावण ने भी अपनी आत्मा को मुक्ति दिलाने का रास्ता बना लिया था .. और हम रावण न कहला करके भी भगवान की लीला.. व् उनसे प्रेम नही कर पाते  ,ये हमारा दुर्भाग्य है ,ये हमारा घमंड नही है तो क्या है ?

अगर आप को लगता है , की वाकय में रावण जैसे अधर्मी का नास होना चाहिए तो अपने भीर भी श्रीराम जैसे विचार लाइए ,रावण जलाने का अधिकार ही उसे है ,जो खुद में भगवान श्रीराम जैसे गुण हो ...भगवान श्री राम हम्हारे भी सारे अवगुण हर्ले हम्हारे आस पास भी राम राज्य सा ही वातावरण बनाए रखे..... ,जय जय श्री राम


Saturday, 20 October 2012

असुर बोले हे मोहिनी ,ये ले अमृत तू जाने तेरा काम जाने हमको तो बस तू मिल जाये...... 

दुसरिबार समुन्द्र मंथन किया तब समुन्द्र से अमृत निकला , उस अमृत के कलस को देखते ही असुर लोग देवताओ से छीन कर ले गए ,सभी देवताओ ने , भगवन से प्रार्थना की ,की  'हे प्रभु आप हमारी रक्षा करो अमृत तो हमारा चला गया.... महेनत तो हमने भी की पर अमृत तो असुर ले गए ,

तब ठाकुर जी मोहिनी रूप लेकर असुरोके पास गए , जो असुर लोग झगड़ रहे थे , की अमृत में पिवु -में पिवु ,जैसे ही भगवान मोहिनी रूप से वहा पधारे तो , झगड़ना तो भूल गए ,और ऐसे मुह लटका कर के बेठ गये , और कहने लगे, आहा कितनी सुन्दर है ,ये किसी कारण , कोई उपाय से हम्हारे पास ही रह जाये तो कितना अच्छा है ,

असुर उस मोहिनी रूपके आगे _ आगे हाथ जोड़ कर विनती  करने लगे, की  हे देवी तुम कौन हो ,तुम्हारा नाम क्या है ,तुम हमारे पास ही रह जाओ तो ? ,ठाकुजी भी ऐसे इटला ते हुए सुनदर शब्दों में बोले मेरा नाम है मोहिनी ,"असुर बोले अरे तुनेतो हमे मोहित कर दिया ,क्या तू हमारे पास नही रह सकती ?
"ठाकुर जी बोले में रहतो सकती हु पर मेरी एक ही शर्त  है, जहा मेरा कहा चलता है ,में वही रहती हु ,

"असुर बोले हे देवी तुम हमको भी आज्ञा दो ,तुम जो कहो हमभी करने को तैयार है ,तब भगवान ने कहा तुम्हारे पास जो अमृत है उस का तुम अकेले ही उपभोग मत करो ,इस अमृत को ,कुछ देवताओ को भी दो....

वे असुर तो ठाकुर जी  के मोहिनी रूप से एसे मोहित हुवे ,की अमृत का कलस मोहिनी के हाथ में पकड़ा दिया , की ये ले अब ये अमृत तू चाहे देवताओ को दे ,या असुरोको  तू जाने तेरा काम जाने ,हमको तो बस तू मिल जाये  ,

तब भगवान ने उस अमृत के कलस का मुह देवताओ की तरफ कर के अमृत तो देवताओ को पिलाया दिया ,और असुरो की तरफ अपना मोहिनी रूप का मुह कर दिया ,
एक असुर को पता चला की हमारे साथ छल हो रहा है तब भगवान ने अपने चक्र से उनका वद्ध किया......

अमृत भले ही देवताओ को मिला हो पर असल में भाग्य साली तो वे असुर है जिनको भगवान के मोहिनी रूप का दर्शन करने को मिला ,अमृत तो फिर कभी पि सकते थे पर ये मोहिनी अवतार तो कुछ पल के लिए ही था        { जय जय श्री राधे }

Saturday, 13 October 2012

  प्रभु को अपने घर  बुलाने की गाँठ  लगा कर तो देखिये.....
एक व्यक्ति बालाजी के मंदीर  जा कर रोज प्रार्थना करता, की हे बालाजी एक करोड़ रूपये की लोटरी लग जाये ,रोज जाता और रोज प्रार्थना करता, एक दीन बालाजी को बहुत ही गुस्सा आया और प्रकट होकर उस व्यक्ति के गाल पर खीच कर एक चाटा मारा  ,"व्यक्ति झनझनाता हुआ बोला मेने तो एक करोड़ रुपयों की लोटरी  लग जाये कहा था , चाटा तो नही माँगा ,"बालाजी गुस्से में आकर बोले अरे मुर्ख ! कबसे बोल रहा है लाटरी लग जाये -लाटरी लग जाये ,टिकट तो खरीद इतना तो काम तू भी कर सारे काम में ही करूँगा ,तो तू क्या करेंगा ?.......

ठीक उस व्यक्ति की तरह हमारा भी येही हाल है ,की कुछ किये बिना ही सब मिल जाये,श्रम किये बिना ही सब मनोरथ पुरे हो जाये.... सच कहे तो भगवान को हमने परेसान कर के रख दिया है ,मनोरथ माँग- माँग कर , कभी नारियल कभी सवामणि, कभी फीते की गाँठ बांध कर, की हे भगवान हम गाँठ लगा कर जाते है हमारी मनोकामनाए पूर्ण हो जाये...

सबको सिर्फ अपनी पड़ी है , भगवान से तो किसी को कोई मतलब ही नही है ,सब भगवान से चाहते है , पर भगवान को कोई नहीं चाहता !
क्या कभी किसी ने भगवान को घर बुलाने की गाँठ  लगायी है ? की हे प्रभु हम आप के दरबार में गाँठ लगा कर जा रहे  है आप को शपत देते है, की आप को हमारे घर आना ही  होगा, हमारा चित्त आप के चरणों में लगाना ही होगा ,हम्हे आप से प्रेम हो जाये ऐसा जादू चलाना ही होगा.....  ,

सच में हम सब आज  दुरियोधन जेसे बन गए है ,कभी अर्जुन जेसे बनकर देखिये , प्रभु को अपने घर  बुलाने की गाँठ  लगा कर तो देखिये  ,इश्वर  को ! हर कदम आप अपने साथ पाएंगे....,भगवान कहते है की दुःख और सुख तो जीवन में धुप छाव की तरह  है ,पर जो निरंतर मुझे भजता है जो मेरा ही स्मरण करता है ,उसे कभी दुःख , दुखी नहीं करता ,क्यों की दुःख में ,में मेरे भक्त को अपनी गोदी में बैठा लेता हु .......

पांडवो जैसा तो दुःख सायद किसी में नही पड़ा होगा .पर भगवान श्री कृष्ण के साथ रहने के कारण उने दुःख कभी दुखी नहीं कर पाया ,और ना ही  कभी पीड़ा महसूस की ....बल्कि सब कुछ होते हुए भी दुखी तो कौरव रहे थे, ये हम सब जानते है
भगवान हमारे  कर्म को सुध करते है कर्म तो हम्हे ही करना  पड़ेगा  , बिना पसीने किये कही एषो आराम नहीं मिलते ....

 { जय जय श्री राधे }
धर्म कहता है...माँ प्रथ्वी हो न हो तुम्हे भगवान श्री कृष्ण की याद आ रही है......
भगवान श्री कृष्ण अपने धाम चले गए.....कलयुग  की छाया पड़ते ही प्रथ्वी माँ श्रीहीन होने लगी..प्रथ्वी व धर्म एक दूजे की कुशलता पूछ ते है..

धर्म प्रथ्वी से  पूछता है , कहो कल्याणी कुशल से तो हो न ? तुम्हारा मुख कुछ - कुछ मलिन हो रहा है तुम श्रीहीन हो रही हो , मालुम होता है तुम्हारे ह्दयमे कुछ न कुछ दुःख अवश्य है ! क्या तुम्हारा कोई सम्बन्धी दूर देस में चलागया है ? जिस के लिए तुम इतनी चिंता कर रही हो ?

कही तुम मेरी चिंता तो नहीं कर रहि हो ,की अब इस के तिन पैर टूट गये है ,एक पैर रह गया है ,सम्भव  है की तुम अपने लिए शोक कर रही हो की ,अब शुद्र तुम पर सासन करेंगे ..देवी क्या तुम राक्षस  सरीखे मनुष्य के द्वारा सताई हुई आरक्षिस स्त्रीयो एव आर्त बल्कोके लिए शोक कर रही हो ? सम्भव है , विद्या अब कुकर्मी ब्राह्मिणो के चंगुल में पड़ गयी है ,और ब्राह्मिन विप्रद्रोही राजाओ की सेवा करने लगे है ,और इसी का तुम्हे दुःख हो रहा है ,आज के राजा  नाममात्र  के है.........

माँ प्रथ्वी अब समझ में आया की हो न हो तुम्हे भगवान श्री कृष्ण की याद आ रही होंगी ,क्यों की उन्होंने तुम्हारा भार  उतरने के लिए ही जन्म लिया था ,और ऐसी लीलाये की थी जो मोक्ष का भी अवलम्बन है ,अब उनकी लीला संवरण करलेने पर उनके परी त्याग से तुम दुखी हो रही हो ,
देवी तुमतो धन रत्नों की खान हो.......

माँ प्रथ्वी ने कहा धर्म मुझसे जो कुछ पूछ रहे हो वह सब तुम स्वय जानते हो इन भगवान के सहारे तुम सारे संसार को सुख पहुचाने वाले अपने चाहो चरणों से युक्त थे जिस में तप,  सत्य ,पवित्रता ,सरलता ,दया समां ,त्याग, संतोस ,इत्यादि 24 और भी बहुत से महान गुण उनकी सेवा करने के लिए नित्य निरंतर निवास करते है, एक शरण के लिए भी उनसे अलग नही होते श्री कृष्ण ने इस लोगसे  माय अपनी लीला संवरण करली.....

और ये संसार पापमय कलयुग की कु द्रष्टि का सिकार हो गया ,यही देख कर मुझे बड़ा शोक हो रहा है , परन्तु मेरे सोभाग्य का अब अंत हो गया भगवान ने मुझे छोड़ दिया, मालूम  होता है की मुझे अपने सोभाग्य पर गर्व हो गया ,इस लिए उन्होंने मुझे ये दंड दिया है ......

धरती माँ  प्रत्येक प्राणी का पालन पोसन करती है, पर हम उस माँ के साथ बहुत अन्याय करते है .. इस धरती पर रहने वाला मनुष्य किसी भी प्रकार का पाप करता है तो माँ को बहुत कस्ट होता है, क्या हम इतने ऐसान फरामोश है................. ??
 { जय जय श्री राधे }

Thursday, 11 October 2012

विष को वहि स्वीकार कर सकता है ,जिन के घट में भगवान श्री राम है उसीको विश्राम  है....

जब देवताओं ने अमृत निकाल ने के लिए  समुन्द्र मंथन किया, तब  समुन्द्र मेसे हलाहल विष निकला , अब उस विष को देख सभी देवता घबराये ,इधर, उधर ,देखने लगे की अब ये विष कौन पिए, अब इसको समुद्र में भी डाला नही जा सकता..

"तब ब्रह्माजी को कहा की आप पि लिजिये,ब्रह्माजी  ने कहा क्यों में क्यों पिऊ ?,बोले आप बूड़े है इस लिए.... जाते- जाते विपतियों को मिटाके ही जाइये ,"ब्रह्माजी बोले  बूड़ा हु तो क्या हुआ में अभी जाना नही चाहता ,इंद्र से कहा तो उसने भी मना कर दिया, जब कोई देव विष लेने को तैयार नही हुए तब महां देव के पास गए ,

वहा जा कर महा देव से विनती करी की , हे भोलेनाथ त्रिपुरारी आसू तोस कृपा निधान चन्द्र सेकर त्रिसुल पाणी ,आप कृपा करो इस विस का समां थान आप ही करो ,शिव जी बोले मेने तो ये विष समुन्द्र में डाल दिया था तुमने इस विष को  बाहर क्यों निकाला ?

देवता बोले महाराज निकालना तो अमृत चाहते थे पर निकल गया विष  , शिव बोले अब ? , बोले अमृत तो पुनः मंथन करने पर  निकलेगा .... शिव बोले फिर अमृत का क्या करोगे ? देवता बोले वो तो हम सब थोडा- थोडा ले लेंगे ....शिव जी बोले ये भी थोडा - थोडा ले लिजिये ...देवता बोले भोलेनाथ  वो थोड़ा - थोड़ा चल सकता है पर ये नही.... इसका तो आप ही कुछ निवारण कीजिये, हे महादेव इसे तो  आप ही  ग्रहण कर सकते है... ,

और भोलेनाथ ने विष को स्वीकार कर लिया ,
विष को वहि स्वीकार कर सकता ,जिन के घट में भगवान श्री राम है उसीको विश्राम  है ,
शिव के घटमे  भगवान श्री राम जी थे इस लिए शिव जी को विश्राम मिला
जय हो नील कंठ महादेव की.. जय भोले नाथ


Friday, 5 October 2012

       श्री कृष्ण बोले गोपी ये तो पेड़ पर फल लगे है...

गोपियाँ नहाकर तट पर आई तो तट पर  वस्त्र ना मिलने पर इधर उधर देखने लगी की हमारे वस्त्र कौन ले  गया , देखा तो ठाकुर जी का पीताम्बर पेड़ पर लटक रहा था ,
ठाकुर जी ने अपना भी वस्त्र हरण कर लिया और अपना  पीताम्बर भी उस पेड़ पर लटका दिया जिस पेड़ पर गोपियाँ के वस्त्र लटकाये हुवे थे, गोपियाँ ने पहचान करी की कन्हैया भी यही कही होगा ,और उतने में बांसुरी सुनी तो समझ में आ गया.... एक गोपी को क्रोध आया की देखो सुबह सुबह आ गया इतनी जल्दी उठ कर आ गया ,गैया  चराने में तो इनको जोर आता है ,

गोपी बोली आरी ओओओओ दारी  के चोर कहिके, लाये  हमारे वस्त्र हमको देदे ,"ठाकुर जी बोले रे एक गाली दो गाली - गाली  पे गाली  वस्त्र चाहिए और धमकी  दे रही  है....ठाकुरजी  बोले  में नहीं देने वाला ,"गोपी बोली कन्हैया हमारे वस्त्र दे......ठाकुरजी  बोले जो ना दिए तो ??... गोपियाँ बोली  तेने अगर हम्हारे वस्त्र ना दिए तो हम तुम्हारी सिकायत कंस से करेंगे..कंस के सिपाही तो को पकड़ ले जायेंगे ,

ठाकुर जी बोले जाओ सिकायत करके आओ.....,पर जावे केसे ,जलमे खड़ी  है ,जा नही सकती ..."एक गोपी बोली की ऐसे धमकी देने से ये कृष्ण वस्त्र देने वाला नही है ...अब गोपियाँ विनती कर रही है ... अरे कन्हैया, ओ श्याम सुनदर ,ओ यशोदा के ,भोले से, प्यारे से ,लाला ,कन्हियो कितनो प्यारो ,है ,  हमरे वस्त्र देइदो लाला,  ,

ठाकुर जी बोलो हाहा  अब कन्हैया श्याम सुंदर कितनो अच्छो.. नही तो चोर दारी के ऐसी -ऐसी  गाली  देती हो....गोपी बोली अरे कृष्ण हम भोली  भारी घिवारन क्या जाने किसको क्या बोले ,क्या कहना चाहिए ,

अब ठाकुर जी बोले गोपियाँ मेने तो तुम्हारे वस्त्र चुराए नही .....गोपियाँ  बोली अच्छा कृष्ण तो ये पेड़ पर कहा से लटक रहे है ?? बोले ये पेड़ पर मेने थोड़ी न लटकाए ,ये तो पेड़ पर फल लगे है.. गोपी बोली अच्छा पेड़ पे फल लगे है ? तो ये फल ही हमे तोड़ के देदो ...
कन्हैया बोले फल अभी कच्चे है तोड़ू नही ..

गोपिय बोली रे ये कृष्ण तो बड़ा उत्पाती  है ...मानेगा नहीं ,तब गोपिय प्रार्थना करने लगी की ,हे कृष्ण हमसे कोई भूल हुई हो तो हमको बतादो, लाला ..कृष्ण बोले गोपीजन  तुम क्या कर रही हो जल में बिना वस्त्र स्नान कर रही हो पाना तो मुझे चाहती हो और आश्रय लेती हो जलके देव वरुण का , गोपिय बोली कृष्ण हमसे भूल  हो गई अब इस भूल  के साथ ही आप को स्वीकार करना पड़ेगा हमारे में भूल है या फूल है, तो भी आप को हमे स्वीकार करना पड़ेगा हम तो तोरे बिना मोल की दासी है श्याम सुन्दर ...
                     {जय जय श्री राधे} .

Thursday, 4 October 2012

मैया बोली अरि सखी जरा घुंघट हठा के पीछे देख, माजा लाला है या तुमचा घरवाला है...

एक दिन गोपी ने कहा की आज तो कन्हैया को रंगे हाँथो पकड़ कर यशोदा के पास ले कर  ही जावूँगी ,कन्हैया जेसे ही माखन  चुरा कर खाने लगे गोपी ने झट हाँथ  पकड़ लिया ,अब कन्हैया को यसोदा के पास ले जा रही है, और पीछे पीछे ग्वाल बाल चल रहे है, उस ग्वाल बालो के साथ गोपी का पति भी था,
गोपी कुछ दुर गयी और देखा की कुछ बुजुर्ग खड़े है, तो गोपी ने घुंघट निकाल दिया ,अब कृष्ण ने सोचा की गोपिसे हाँथ छुड़ाने का ये मोका अच्छा है वर्ना आजतो मैया से मार पड़ेगी....

कृष्ण गोपी को बोले "प्रभा काकी मेरे इस हाँथ मे दर्द होने लगा है दूसरा हाँथ पकड़ लो ,गोपी को दया आ गयी की छोटो सो लाला है हाथ दर्द कर रहा होगा   ,
"गोपी बोली ठीक है दूसरा हाँथ पकड़ा लो ,कृष्ण ने पीछे चल रहे गोपी के पति को हाँथ से गोल गोल इशारा किया की आजा लड्डू दूंगा ,गोपी ने जेसे ही कृष्ण का दूसरा हाँथ पकड़ा तो कृष्ण ने उनके हाँथ में पतिका हाँथ पकड़ा दिया ,और खुद भाग निकले

अब गोपी नन्द बाबा के घर के बाहर से ही जोर जोर से चिलाने लगी ,की अरी ओओओओ यसोदा मैया देख आज तेरे लाला को रंगे हाँथो पकड़ कर लायी हु , रोज रोज कहती है मेरा छोरा बड़ा सीधा है आज तोरे लाला को माखन चोरी करते हुए मेने रंगे हाँथो पकड़ है !

और मैया समझ गयी की ये सब घुंघट का काम है "मैया बोली अरि सखी जरा घुंघट हटा कर पीछे तो देख माजा लाला है या तुमचा घरवाला ,गोपी घुंघट हटा के पीछे देखती है तो पति का हाँथ गोपी के हाँथ में "गोपी बोली तूम यहाँ केसे आ गये, अब वो भाई तो सब भूल गया ,और कहा की कन्हैया ने कहा की लड्डू दूंगा.... गोपी बोली कन्हैया ने कहा लड्डू दूंगा और तुम आ गये ,मेरे पीछे पीछे  आने की क्या जरूरत थी ,कन्हैया  कहा है ? पति बोला कन्हैया तो कब का भाग चूका गोपी बोली ,कन्हैया को भगा दिया और तुम आ गये घर चलो तुम्हे में लड्डू देती हु ,अब गोपी का पति तो घबराने लगा ..

उतने में कन्हैया आख मलते मलते अन्दर से आये, और बोले कोंन है मैया ,कोंन गोपी चिला रही है ..ओहोहोहोहो   प्रभा काकी आप ,गोपी बोली प्रभा काकी के इथर आ तू रुक अब ,कन्हैया आगे आगे और गोपी पीछे पीछे ,कन्हैया ठेंगा दिखाते  हुए बोले ले पकड़ पकड़ पकड़ पकड़,

कन्हैया बोले गोपी अबकी पकड़वे  की कोसिस की सो पति का हाँथ पकड़ा दिओ, आगे से पकड़वे की कोसिस की तो ससुर का हाँथ पकड़वा दुगा... मेरा नाम भी कन्हेया है, ,कन्हेयायाया
ऐसे है हमारे ठाकुर जी माखन  चोर ,ये माखन चोरी नही ये तो मनकी चोरि है ,श्री कृष्ण तो गोपियाँ के मन चुराते है...जय जय श्री राधे


Sunday, 30 September 2012


 "गोपिया ने श्री कृष्ण से कहा की 'हे कृष्ण हमे अगस्त्य रिसी को भोग लगाने जाना है, और ये यमुनाजी बीच में पड़ती है अब बताओ केसे जाये
भगवान श्री कृष्ण ने कहा की जब तुम यमुनाजी के पास जाओ तो कहना की ,हे यमुनाजी अगर श्री कृष्ण ब्रह्मचारी है तो हमे रास्ता दे ,गोपिय हंसने लगी की लो ये कृष्ण भी अपने आप को ब्रह्मचारी समझता है ,सारा दिन तो हमारे पीछे पीछे घूमता है ,कभी हमारे वस्त्र चुराता है कभी मटकिया फोड़ता है ....,खेर हम बोल देगी ,

गोपिय यमुना जी के पास जाकर कहती है, हे यमुनाजी अगर श्री कृष्ण ब्रह्मचारी है तो हमे रास्ता दे ,और गोपिय के कहते ही यमुनाजी ने रास्ता देदिया ,अब अगस्त्य ऋषि को भोजन करवा कर वापिस आने लगी तो अगस्त्य ऋषि से कहा की अब हम घर केसे जाये यमुनाजी बीच में है ,

अगस्त्य ऋषि ने कहा की तुम यमुनाजी को कहना की अगर अगस्त्य जी निराअहार है तो हमे रास्ता दे ,गोपियाँ  कहने लगी की अभी हम इतना सारा भोजन लाई सो सब गटका गये और अब अपने आप को निराहार बता रहे है ,गोपिया यमुनाजी के पास जाकर बोली, हे यमुनाजी अगर अगस्त्य ऋषि निराहार है तो हमे रास्ता दे और यमुनाजी ने रास्ता दे दिया ,

गोपिय आस्चरिय करने लगी की जो खता है वो निराहार केसे हो सकता है, और जो दिनरात हमारे पीछे पीछे फिरता है वो ब्रह्मचारी केसे हो सकता है ,
भगवान श्री कृष्ण कहने लगे गोपिया मुझे तुमारी देहसे कोई लेना देना नही है मेतो तुम्हारे प्रेम के भाव को देख कर तुम्हारे पीछे आता हु जो मुझसे प्रेम करता है में उनका सच में रिणी हु में तुम सबका रिणी हु ...
                                                 { जय जय श्री राधे }

  कलयुग में भक्ति वही सुखी रहती है जहा ज्ञान और वैराग्य हो

एक दिन नारद जी आकास मार्ग से चले जा रहे थे की उनकी नजर प्रथ्वी पर पड़ी , देखा की एक युवती समुन्दर के किनारे विलाप कर रही है ,और उनके पास दो बूड़े पुरुष जोर जोर से खास रहे है , अनेक स्त्रीया उने पंखा कर रही है नारद जी ने उस स्त्री  से पूछा ,की तुम कौन हो? ये दोनों बूड़े पुरुष तुम्हारे क्या लगते है ? और ये इत्रिय कोंन है ? 
उसने कहा की मेरा नाम भक्तिमहारानी है .ये बूड़े पुरुष ज्ञान और वैराग्य, मेरे पुत्र है जो कलयुग की छाया  पड़ते ही बूड़े हो गये , और ये स्त्रीया गंगा जमना आदि देविया है जो मेरी सेवा में लगी है ,भक्तिमहारानी दुखी होकर बोली नियम के अनुसार तो मां को बूड़ी व् बच्चो को जवान होना चाहिए!! , और परीक्षित को कोसने लगी ,की उसने कलयुग को आने ही क्यों दिया.. 
हे मुनि आप तो बहुत ज्ञानी महा पुरुष हो, मेरे पुत्रो को जगाइए...
नारदजी ने बहुत प्रयास किया पर वे चेतन नही हुए ,

उतने में आकाश वाणी हुई और कहा की ,अब इनकी मूर्छा भगवत कथा से ही खुलेगी, आप भगवत कथा की तयारी कीजिये ,और नारदजी ने जेसे ही अपने करताल ध्वनी से भगवत कथा प्रारम्ब की ,तो भक्तिमहारानी अपने पुत्र ज्ञान और वैराग्य को उठा कर वह ले आई जहा भगवत कथा हो रही थी ,परमात्मा का नाम कानोमे पड़ते ही वे चेतन होगये ,एव भक्ति ,ज्ञान व् वैराग्य ये तीनो ही प्रत्येक वह बेठे लाखो भक्तो के अन्दर झुमने लगे...
 

आज भी भक्ति तो जवान है चंचल है, जो आ तो आसानी से जाती है पर स्थीर नही रहती, जहा ज्ञान और वैराग्य चेतन है वहा वे बहुत आनंद देती है......जहा बच्चे होते है वहा माँ भी हमेसा सुखी रहती है

 वह मोद न मुक्ति के  मंदिर में है , जो प्रमोद भरा व्रजधाम में है
उतनी छवि राशी कही भी नही , जितनी छवि शुन्दर श्याम में है  
ससि में न सरोज सुधारस में , न ललाम लता अभी नाम में है
उतना सुख और  कही भी नहीं , जितना सुख कृष्ण के नाम में है
     जय राधे कृष्ण गोविन्द गोपाल ,राधे राधे..

                             श्री राधे 

Thursday, 16 August 2012


एक भक्त बिहारी जी से प्राथना कर रहा है 
की हे बिहारी तुम मुझ पे भी कुछ ऐसी कृपा कर 

बिहारी ब्रजमे घर मेरा बसालोगे तो क्या होगा
कृपा करके जो व्रन्दावन बुलालोगे तो क्या होगा

कभी तुम सामने आते , कभी फिर दूर हो जाते
हमारे बीचका पर्दा हटा दोगे तो क्या होगा

सुना है तुमने वृन्दावन में दावानल बुझाया था
मेरी विरहा की अग्नि को बुझादोगे तो क्या होगा

तेरा दीदार पाने को तरसती है मेरी नजरे
अगर दासी को चर्णो से लगालोगे तो क्या होगा

तुम अपने होटो की बंसी सुनालोगे तो क्या होगा
बिहारी ब्रजमे में घर मेरा बसालोगे तो क्या होगा
कृपा करके जो व्रन्दावन बुलालोगे तो क्या होगा
हरे कृष्ण हरे कृष्ण ,कृष्ण -कृष्ण हरे हरे....

Friday, 10 August 2012

संग न करो किसी राजा का ना जाने कब रुलादे 
संग करो हरी भक्त का  ना जाने कब हरी से मिलादे ...
                             
                        कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभ कामनाये 

नटवर नन्द किशोर , बसों मेरे मन में तुम चित चोर 
रोम रोम में तुम बस जाओ , रखोना खली ठोर
ऐसी प्रीत जगा मेरे मन मे , चित ना लगे कही और 
जिस नयनन में तुम बस जाओ , दूजा ना बसे कोई और 
चित भी चुराता मन भी चुराता तू ही तो है वो चोर ??
ऐसा जादू चला मन मोहन ,तुही  दिखे चाहू और
नटवर नन्द किशोर ,बसों मेरे मन में तुम चित चोर .....
      { जय जय श्री राधे }

Tuesday, 7 August 2012

       सीता मईया का तो हरण हुआ ही नही था...

कुछ लोग कहते है भगवान श्री राम तो भगवान थे
वो अंतरयामी थे फिर उनकी पत्नी सीता का हरण
रावण ने किया तो राम जी ने रोका क्यों नही
वोतो सब कुछ जानने वाले थे फिर ऐसा क्यों हुआ .....

सच तो ये है की रावण सीता मईया की छाया तक को भी छू नही पाया , अगर सीता मईया को छू लेता तो रावण वही भस्म हो जाता |
जो स्वयम सीता मईया थी वो तो पहले ही अग्नि में समां गयी थी
भगवान श्री राम ने सीता मईया से कहा " हे प्रिये ,हे सुन्दर पतिव्रता धर्म का पालन करने वाली सुशीले सुनो , अब में कुछ मनुए मनोहर लीला करूँगा इसलिए जब तक में राक्षसो का नाश करूँ , तब तक तुम अग्नि में निवास करो | श्री राम जी ने ज्योही सब समझा कर कहा त्यों ही श्री सीता मईया ने प्रभु के चरणों को ह्रदय में धर कर अग्नि में समां गयी और फिर सीता मईया ने अपनी ही छाया मूर्ति वहां रख दी , जो उनके जैसी ही शील स्वभाव और रूप वाली तथा वेसे ही विनम्र थी |
भगवान श्री राम ने रावण के भाई खरदुसण को तो पहले ही मार डाला था | जब रावण ने खरदुसण के युद्ध में मारे जाने की खबर सुनी तो रावण को रात भर सो नही पाया | वह मन ही मन विचार करने लगा की देवता मनुष्य असुर नाग और पक्षियों में कोई ऐसा नही जो मेरे सेवक को भी पा सके खर्दुष्ण तो मेरे ही समान बलवान था उन्हें भगवान के सिवा और कौन मार सकता है और सोच ने लगा की देवताओ को आनंद देनेवाले और प्रथ्वी का भार हरण करनेवाले भगवान ने ही यदि अवतार लिया है तो में जाकर उनसे हट पूर्वक वैर करूँगा और प्रभुका बाण आघात से प्राण छोड़ कर भवसागर से तर जाऊँगा इस तामस शरीर से भजन तो होगा नहीं.....रावण जब छवि रूपी सीता मईया का हरण करने गया तो पहले तो मुनि के वेस में आया और फिर बहार से छल कपट करता हुआ जब उस छवि रूपी सीता मैया का हरण करने से पहले अपने जीवन को धन्य मानते हुए मन ही मन सीता मईया के चरणों में प्रणाम किया ...और फिर श्री राम जी ने रावण से युद्ध करके लंका पर जीत पाई तब लक्ष्मण जी से श्री राम जी ने कहा की सीता अग्नि परीक्षा दे | जब सीता जी की अग्नि परीक्षा हुई तो .. उस अग्नि में सीता मईया की छवि थी वो जल गयी और सीता मईया जो अग्नि में निवास कर रही थी वो बाहर आ गई ..इस बात से लक्ष्मण जी को बहुत दुःख हुआ की क्या प्रभु को माता पर विश्वास नही था जो माता की अग्नि परीक्षा ली, ऐसा राम जी ने क्यों किया ??क्यों की अग्नि परीक्षा नहीं होती तो जो सीता मईया अग्नि में निवास क़र रही थी उनको भगवन बार केसे लाते.. भगवान की इन लीलाओं से लक्ष्मण जी अंजान थे जो लक्ष्मण जी नारायण के रात दिन पास में रहने के बावजुद भी उनकी लीलाओं को नही जान पाए तो हम भला उस परमात्मा की रची रचना को कैसे जान पाएंगे इसलिए भगवान की लीलाओं पे कोई शंका मत कीजिये उनकी हर रचना को आदरपूर्वक स्वीकार कीजिये..जय सिया राम..

भगवान के नाम से कोई तेर सकता है भगवान  जिस को फेंक दे वो नही.....


एक बार भगवान श्री राम समुन्द्र के किनारे खड़े सोच रहे थे की जब मेरे नाम से पत्थर तेरते है तो में खुद अपने हाथो से एक पत्थर फेक कर देखू मेरे हाथ लगेंगे तो सायद तेर जाये भगवान ने पत्थर उठाया और चुपके से समुन्द्र में जेसे ही फेका, और वो डूब गया राम जी इधर उधर देख ने लगे की किसी ने देखा तो नही ,और तो कोई नही थे पीछे खड़े हनमान जी देख रहे थे और हंस कर बोले प्रभु ये आप क्या कर रहे हो ये पत्थर फेक रहे हो ,तो राम जी बोले हा हनुमान में देखना चाहता था की जब मेरे नाम से पत्थर तेरते है तो में फेकुंगा तो सायद वो फिरभी तेर जाये ,हनुमान जी झट चरणों में घिर कर बोले प्रभु आप के नाम से कोई तेर सकता है जिस की जीवा पर आप का नाम है वो तेर सकता है आप जिसको फेंक दो वो भला केसे तेरे सकता है

कहने का तातप्राय है, ये राम नाम तो नौका की तरह है , नाम चाहे कोई भी हो चाहे राम कहो या राधा कृष्ण कोई भी आप के ईस्ट देव हो हर नाम उस परमात्मा तक पहुचता है...

इस लिए किसी संत ने ठीक ही कहा है
बेकार वो मुख है जो रहे व्यर्थ बातो में
मुख वो है जो हरिनाम का सुमिरन किया करे ...जय श्री राम

Saturday, 21 July 2012


              हे कृष्ण हम्हे यु बिछुरा के न जाओ 

भगवान श्री कृष्ण जब मथुरा जाने लगे तो गोप गोपी पसु पक्षी रास्ता रोक कर खड़े होगये
और कहने लगे की हे कृष्ण आप हमे अनाथ करके कहा जा रहे हो हे प्रभु आप के जाने से
वेसे ही ये प्राण निकल जायेंगे इस से तो अच्चा है की आप रथको हमारे ऊपर से ही चलाके जाओ
फिर भी कृष्ण ना मने तो गोपिय कहने लगी की...

जा रहे हो तो जाओ कन्हिया लेकिन इतना रहेम करते जाओ
दिल्तो पहले ही तुम ले चुके हो, अबतो प्राणोको भी लेते जाओ

प्रेम विरहा में झर्जायेंगी हम, तेरे जानेसे मरजायेंगी  हम
केसे दीदार कर पाएंगे हम ,युना हमको तड़पाके जाओ

प्यार के मोड़ पर मिलगये हो अगर ,उम्र भर साथ देने का वादा करो
आगये हो तो जाने की जिद्द ना करो, जा रहे हो तो आने का वादा करो
आज जाओगे जो छोर कर, क्या ना अओंगे  फिर लोट कर
आज हमसे नजर फेरकर ,जाते जाते ना हमको रुलाओ
साथ प्राणों को भी लेते जाओ ...
इस तरह से गोपिय रुधन करने लगी ...

प्रभुका  रथ जब मथुरा की और जाने लगा है तो गोपिय कह रही है
की देखो सखी हमारे प्यारे की रथ की ध्वजा दिखाई दे रही है ..
गोपिय बहुत विलाप करने लगी और कहती है की

रुकसत हुए तो आखं मिलाके भी नहीं गए
वो क्यों गए है ये भी बताके नही गए
रहने ना दिया  उन्होंने किसी काम का हमे
और खाक में भी हम को मीलाके नही गए

हठ ठोड कु ठोड स्न्हेह्की ठोकर वोतो देअगयो देअगयो देअगयो रि
चित मेरो चुरायके चोर सखी वोतों लेगयो लेगयो लेगयो रि...

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे .....

Sunday, 15 July 2012

परमात्मा जो करता है वो ठीक ही करता बे ठीक कुछ भी नही 
 जैसे की हम सभी जानते है की जब्भी सोतेली माँ मी बात आती है 
तो हम केकयी का ही नाम लेते है की सोतेली माँ ने तो भगवान को भी नहीं बक्सा 
पर सही कहे तो केकयी जैसी माँ ना तो आज तक हुए है 
और नाही होंगी इस जगमे सभी यस चाहते है पर कु यस कोई नही चाहता
एक केकयी ऐसी माता थी जिसने अन गिनत बद्दुवाए गालिया सई
यहाँ तक की उनके बेटे भरत ने भी उनको कुल्टा कुलक्षणी अन्य प्रकार से उनको कोष
जबकि भगवान श्री राम तो केकयी माँ को अपने प्राणों से भी प्रिय थे ..
जब राजा दसरथ जी ने भगवान श्री राम के राज तिलक की घोषणा की और
जब ये बात सभी अयोध्या वासियों ने सुनी की राम जी हमारे राजा बनने जा रहे है
तो सभी खुसी से फुले नही समा रहे थे ..एक तरफ तो अयोध्या में ढोल नगाड़े और
गालिया चोबारे फूलोसे सजाये जा रहे थी ,और दूसरी तरफ सभी देवताओ में शोक छा गया
की ये क्या हो रहा है राजा दसरथ भगवान श्री राम के राज तिलक की तइयार कर रहे है ,
अगर भगवान श्री राम ने अपने पिताकी आज्ञा मानकर राज गद्दी पे बेठ गए तो अनर्थ होजएंगा
जिस काम के लिए नारायण ने एक सादारण नर के रूप में अवतार लिया है वो पूरा केसे होंगा ,
हमे इन राक्षसों से और अत्या चार से मुक्ति केसे मिलेंगी ?
और फिर सभी देवताओ ने सोच बीचार के कहा की अब एसा क्या उपाय किया जाये
जिस से भगवान श्री राम ,राज गद्दी को त्यग कर वन को चले जाये,
फिर सभी देवताओ ने निरणय लिया की ये काम माता सरस्वती कर सकती है
सभी ने नारद जी को आदेस दिया की माँ सरसती जी को बुलाया जाये ,कुछी ही
समय में माँ सरसती देवताओ के बिच उपस्तित हुई ,माँ सरसती ने सभी देवताओ को
प्रणाम कर के कहा की कहिये आज आप सभी देवताओ ने मुझे केसे याद किया
जब वहा सभी देवताओ ने कहा की माता ऐसा कुछ कीजिये की राम ,राज गद्दी
को छोड़ वनको चले जाये ,जब ये बात माँ सरस्वती ने सुनी तो उनको बड़ा ही दुःख हुआ
और एक बार तो मान करदिया की ये काम में नही करसकती ,
क्या राम वनके योग्य है ??जब सभी देवताओ ने विष्तार पूर्वक कहा की
केकयी के २ वरदान भी तो बाकि है , तो माता समझ गयी और देवताओ
की आज्ञा का पानल करते हुए ,अयोध्या में एक कुबरा नाम की दासी के मन मस्तिक में
कुबुधि के रूप में छा गयी और दासी कुबरा ,और केकयी ने वोही कहा जो
माँ सरस्वती चाहती माँ ने केकयी की बुधि पूरी तरह से बिगाड़ दीइसलिए जो होता है, वह ठीक ही होता है, बेठीक होता ही नहीं ...
 { जय जय श्री सीताराम }
 

हम्हे श्याम का ही दीदार चाहिए 

 श्याम की कोई खबर लता नही

बे खबर हमसे रहा जाता नही


जी चाहता है मेरे श्याम में पंछी बनू 

पंख बिना उड़ा जाता नही 
 

जी चाहता है मेरे श्याम तेरी जोगन बनू, 

दरबदर महासे फिरा जाता नहीं


जी चाहता है मेरे श्याम तुझे ख़त लिखू ,

पर तेरे दर का पता कोई बताता नही


श्याम की कोई खबर लाता नहीं, 

बेखबर हमसे रहा जाता नहीं ...
                                

हमे तो श्यामा का ही दीदार चाहिए

उन्ही के इश्क का बीमार चाहिए .....
                                     



{ जय जय श्री राधे }
          कर्मो का फल तो हमे ही भोगना पड़ता है
 
एक बार दो व्यक्ति राह चलते -चलते बाते कर रहे थे की महाराज कथा में कहते है
"की व्यक्ति चाहे कितना भी पाप करे ,एक बार गंगामे डुबकी लगाने से सारे पाप धुल्जाते है,"
ये बात किसी दुसरे संतने सुनली और गंगा मईया के पास गए
संत ने पूछा की "गंगा मईया क्या ये सच है की जो मनुष्य पाप करके आप में डुबकी लगता है
आप उनके सारे पाप धोदेती है और उनके पाप आप अपने पास रखती है ?,
गंगा मईया ने कहा की में भला किसी का पाप अपने पास क्यों रखूंगी मै तो बहती रहती हु
ओर, सागर में जा मिलती हु ' और सारे पाप सागर में चले जाते है" ,
सागर से पूछा की क्या सभी मनुष्य के पाप आप अपने पास रखते है ?
सागर ने कहा 'कभी नही' , मेरे अन्दर तो ऐसा तूफान उठता है की जो जिसका पाप होता है
उसपे बरस जाता है ,
कहने का अभिपर्याय है की पाप किसी का बाप नहीं है जो हम्हे बक्श देंगा इस लिए ....
किसी गरीब निर्दोस व्यक्ति को सताना पाप है
किसी भी लाचार बेबस जिव की हत्य करना पाप है
छाल कपट से किसी का धन हड़पना पाप है
पाप और पुन्य का संबंद हमारे सरीर से नही आत्मासे है
चाहे हम कहिभी जाये पाप हमारा पीछा नही छोड़ता
और पुन्य हमारा साथ नही छोड़ता
न जाने कब इश्वर के घरका बुलावा आजाये और इस सरीर को त्याग कर जाना पड़े इस लिए
भूलकेभी इस जीव को पाप और कु कर्मो में लिप्त ना होने दे..परमात्मा सबको सद्बुधी दे
                           {जय जय श्री राधे}


Sunday, 17 June 2012

                              सुविचार

1 ऐ धरती के रहने वालो, धरती को स्वर्ग बनाना है॥
   है स्वर्ग कहीं यदि ऊपर तो, उसको इस भू पर लाना है॥
                 { जय जय श्री  राधे }
2 अन्य लोगो के  कष्टपीडि़त और अभावग्रस्त रहते
   स्वयं मौज-मस्ती में रहना मानवीय अपराध हैं
               { जय जय श्री  राधे } 

3 चेहरा देना कुदरत का काम  है ,उसे सुंदर भाव देना आपका ....
आप हर पल मुश्कुराते रहिये, आपकी यही मुश्कान अपनों को खुसी देंगी
           { जय जय श्री  राधे }               
4 लोग प्यार करना सीके। हममें, अपने आप में, अपनी आत्मा और जीवन में परिवार में, समाज में, कर्तव्य में और ईश्वर में दसों दिशाओं में प्रेम बिखेरना और उसकी लौटती हुयी प्रतिध्वनि का भाव भरा अमृत पीकर धन्य हो जाना, यही जीवन की सफलता है। 
             { जय जय श्री  राधे }  
5 पीड़ित से यह मत पूछिये कि तुम्हार दर्द कैसा है। उसकी पीड़ा को स्वय में देखिए और फिर आप वह सब कीजिए जो आप अपनी ओर से कर सकते है। 
             { जय जय श्री  राधे }  
6 सुख और आनन्द ऐसे इत्र हैं... जिन्हें जितना अधिक दूसरों पर छिड़केंगे, उतनी ही सुगन्ध आपके भीतर समायेगी। 
       { जय जय श्री  राधे }    
7 बिना गिरे कोई चलना नही सिखता गिरजाना बुरी बात नही है
   गिरे पड़े रहना बुरी बात है और गिरकर सम्बल जाना अच्छी बात है 

         { जय जय श्री  राधे } 
8 अपने लक्ष्य को इतना माहन बनादो की
  व्यर्थ के लिए समय ही नही बचे
      { जय जय श्री  राधे } 
9 मन यदि संसार में रमा है तो लोभ को बढाएगा !
   मन यदि परमात्मा में रमा है तो प्रेम को बढाएगा !
        { जय जय श्री  राधे } 
10 अगर रिस्ता सबसे बड़ा  कोई हो सकता है तो वही रिश्ता बड़ा है
     जो परमात्मा से जोड़ता है।  
       { जय जय श्री  राधे }